Lekhika Ranchi

Add To collaction

उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद


गोदान

मालती ने पूछा -- माली क्या बिलकुल पानी नहीं देता?
मँझली बहन सरोज ने कहा -- पड़ा-पड़ा सोया करता है सूअर। जब कहो, तो बीस बहाने निकालने लगता है।
सरोज बी. ए. में पढ़ती थी, दुबली-सी, लम्बी, पीली, रूखी, कटु। उसे किसी की कोई बात पसन्द न आती थी। हमेशा ऐब निकालती रहती थी। डाक्टरों की सलाह थी कि वह कोई परिश्रम न करे, और पहाड़ पर रहे; लेकिन घर की स्थिति ऐसी न थी कि उसे पहाड़ पर भेजा जा सकता। सबसे छोटी वरदा को सरोज से इसलिये द्वेष था कि सारा घर सरोज को हाथों-हाथ लिये रहता था; वह चाहती थी जिस बीमारी में इतना स्वाद है, वह उसे ही क्यों नहीं हो जाती। गोरी-सी, गर्वशील, स्वस्थ, चंचल आँखोंवाली बालिका थी, जिसके मुख पर प्रतिभा की झलक थी। सरोज के सिवा उसे सारे संसार से सहानुभूति थी। सरोज के कथन का विरोध करना उसका स्वभाव था। बोली -- दिन-भर दादाजी बाज़ार भेजते रहते हैं, फ़ुरसत ही कहाँ पाता है। मरने को छुट्टी तो मिलती नहीं, पड़ा-पड़ा सोयेगा!
सरोज ने डाँटा -- दादाजी उसे कब बाज़ार भेजते हैं री, झूठी कहीं की!
'रोज़ भेजते हैं, रोज़। अभी तो आज ही भेजा था। कहो तो बुलाकर पुछवा दूँ? '
'पुछवायेगी, बुलाऊँ? '
मालती डरी। दोनों गुथ जायँगी, तो बैठना मुश्किल कर देंगी। बात बदलकर बोली -- अच्छा ख़ैर, होगा। आज डाक्टर मेहता का तुम्हारे यहाँ भाषण हुआ था, सरोज?
सरोज ने नाक सिकोड़कर कहा -- हाँ, हुआ तो था; लेकिन किसी ने पसन्द नहीं किया। आप फ़रमाने लगे -- संसार में स्त्रियों का क्षेत्र पुरुषों से बिलकुल अलग है। स्त्रियों का पुरुषों के क्षेत्र में आना इस युग का कलंक है। सब लड़कियों ने तालियाँ और सीटियाँ बजानी शुरू कीं। बेचारे लज्जित होकर बैठ गये। कुछ अजीब-से आदमी मालूम होते हैं। आपने यहाँ तक कह डाला कि प्रेम केवल कवियों की कल्पना है। वास्तविक जीवन में इसका कहीं निशान नहीं। लेडी हुक्कू ने उनका ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया।
मालती ने कटाक्ष किया -- लेडी हुक़्क़ू ने? इस विषय में वह भी कुछ बोलने का साहस रखती हैं! तुम्हें डाक्टर साहब का भाषण आदि से अन्त तक सुनना चाहिए था। उन्होंने दिल में लड़कियों को क्या समझा होगा?
'पूरा भाषण सुनने का सब्र किसे था? वह तो जैसे घाव पर नमक छिड़कते थे। '
'फिर उन्हें बुलाया ही क्यों? आख़िर उन्हें औरतों से कोई वैर तो है नहीं। जिस बात को हम सत्य समझते हैं, उसी का तो प्रचार करते हैं। औरतों को ख़ुश करने के लिए वह उनकी-सी कहनेवालों में नहीं हैं और फिर अभी यह कौन जानता है कि स्त्रियाँ जिस रास्ते पर चलना चाहती हैं वही सत्य है। बहुत सम्भव है, आगे चल कर हमें अपनी धारणा बदलनी पड़े। '
उसने फ़्रांस, जर्मनी और इटली की महिलाओं के जीवन आदर्श बतलाये और कहा -- शीघ्र ही वीमेंस लीग की ओर से मेहता का भाषण होनेवाला है। सरोज को कुतूहल हुआ।
'मगर आप भी तो कहती हैं कि स्त्रियों और पुरुषों के अधिकार समान होने चाहिए। '
'अब भी कहती हूँ; लेकिन दूसरे पक्षवाले क्या कहते हैं, यह भी तो सुनना चाहिए। सम्भव है; हमीं ग़लती पर हों। '
यह लीग इस नगर की नयी संस्था है और मालती के उद्योग से खुली है। नगर की सभी शिक्षित महिलाएँ उसमें शरीक हैं। मेहता के पहले भाषण ने महिलाओं में बड़ी हलचल मचा दी थी और लीग ने निश्चय किया था, कि उनका ख़ूब दन्दाशिकन जवाब दिया जाय। मालती ही पर यह भार डाल गया था। मालती कई दिन तक अपने पक्ष के समर्थन में युक्तियाँ और प्रमाण खोजती रही। और भी कई देवियाँ अपने भाषण लिख रही थीं। उस दिन जब मेहता शाम को लीग के हाल में पहुँचे, तो जान पड़ता था हाल फट जायगा। उन्हें गर्व हुआ। उनका भाषण सुनने के लिए इतना उत्साह! और वह उत्साह केवल मुख पर और आँखों में न था। आज सभी देवियाँ सोने और रेशम से लदी हुई थीं, मानो किसी बारात में आयी हों। मेहता को परास्त करने के लिए पूरी शक्ति से काम लिया था और यह कौन कह सकता है कि जगमगाहट शक्ति का अंग नहीं है। मालती ने तो आज के लिए नये फ़ैशन की साड़ी निकाली थी, नये काट के जम्पर बनवाये थे और रंग-रोगन और फूलों से ख़ूब सजी हुई थी, मानो उसका विवाह हो रहा हो। वीमेंस लीग में इतना समारोह और कभी न हुआ था। डाक्टर मेहता अकेले थे, फिर भी देवियों के दिल काँप रहे थे। सत्य की एक चिनगारी असत्य के एक पहाड़ को भस्म कर सकती है। सबसे पीछे की सफ़ में मिरज़ा और खन्ना और सम्पादकजी भी विराज रहे थे। राय-साहब भाषण शुरू होने के बाद आये और पीछे खड़े हो गये।
मिरज़ा ने कहा -- आ जाइए आप भी, खड़े कब तक रहिएगा।
राय साहब बोले -- नहीं भाई, यहाँ मेरा दम घुटने लगेगा।
'तो मैं खड़ा होता हूँ। आप बैठिए। '
राय साहब ने उनके कन्धे दबाये -- तकल्लुफ़ नहीं, बैठे रहिए। मैं थक जाऊँगा, तो आपको उठा दूँगा और बैठ जाऊँगा, अच्छा मिस मालती सभानेत्री हुईं। खन्ना साहब कुछ इनाम दिलवाइए।
खन्ना ने रोनी सूरत बनाकर कहा -- अब मिस्टर मेहता पर ही निगाह है। मैं तो गिर गया।
मिस्टर मेहता का भाषण शुरू हुआ -- ' देवियो, जब मैं इस तरह आपको सम्बोधित करता हूँ, तो आपको कोई बात खटकती नहीं। आप इस सम्मान को अपना अधिकार समझती हैं; लेकिन आपने किसी महिला को पुरुषों के प्रति ' देवता ' का व्यवहार करते सुना है? उसे आप देवता कहें, तो वह समझेगा, आप उसे बना रही हैं। आपके पास दान देने के लिए दया है, श्रद्धा है, त्याग है। पुरुष के पास दान के लिए क्या है? वह देवता नहीं, लेवता है। वह अधिकार के लिए हिंसा करता है, संग्राम करता है, कलह करता है .. ' तालियाँ बजीं।
राय साहब ने कहा -- औरतों को ख़ुश करने का इसने कितना अच्छा ढंग निकाला।
'बिजली ' सम्पादक को बुरा लगा -- कोई नयी बात नहीं। मैं कितनी ही बार यह भाव व्यक्त कर चुका हूँ।
मेहता आगे बढ़े -- इसलिए जब मैं देखता हूँ, हमारी उन्नत विचारोंवाली देवियाँ उस दया और श्रद्धा और त्याग के जीवन से असन्तुष्ट होकर संग्राम और कलह और हिंसा के जीवन की ओर दौड़ रही हैं और समझ रही हैं कि यही सुख का स्वर्ग है, तो मैं उन्हें बधाई नहीं दे सकता।
मिसेज़ खन्ना ने मालती की ओर सगर्व नेत्रों से देखा। मालती ने गर्दन झुका ली।
खुर्शेद बोले -- अब कहिए। मेहता दिलेर आदमी है। सच्ची बात कहता है और मुँह पर।
'बिजली ' सम्पादक ने नाक सिकोड़ी -- अब वह दिन लद गये, जब देवियाँ इन चकमों में आ जाती थीं। उनके अधिकार हड़पते जाओ और कहते जाओ, आप तो देवी हैं, लक्षमी हैं, माता हैं।
मेहता आगे बढ़े -- स्त्री को पुरुष के रूप में, पुरुष के कर्म में, रत देखकर मुझे उसी तरह वेदना होती है, जैसे पुरुष को स्त्री के रूप में, स्त्री के कर्म करते देखकर। मुझे विश्वास है, ऐसे पुरुषों को आप अपने विश्वास और प्रेम का पात्र नहीं समझती और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, ऐसी स्त्री भी पुरुष के प्रेम और श्रद्धा का पात्र नहीं बन सकती।
खन्ना के चेहरे पर दिल की ख़ुशी चमक उठी। राय साहब ने चुटकी ली -- आप बहुत ख़ुश हैं खन्नाजी!
खन्ना बोले -- मालती मिलें, तो पूछूँ, अब कहिए।

   2
0 Comments